Kamasutra



   
 
विद्या समुदेश प्रकरण 1

 
श्लोक-1. धर्मार्थाग्ङविद्याकालाननुपरोधयन् का्मसूत्रं तदग्ङविद्याश्च पुरुपोऽधीयीत 1।।

अर्थ- अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र और इनके अंगभूत शास्त्रों के अध्ययन के साथ ही पुरुष को कामशास्त्र के अंगभूत शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए।

व्याख्या-

     मुनि वात्स्यायन ने इस श्लोक में "विद्या" शब्द का उपयोग किया है। धर्मविद्या और उसकी अंगभूत विद्याओं को पढ़ने के साथ कामशास्त्र तथा उसकी अंगभूत विद्याओं को पढ़ने की सलाह दी गयी है।

     यह चौदह विद्याओं तथा सात सिद्धांतों पर आधारित है। इन्ही चौदह विद्याओं के विभिन्न प्रकार बाद में विभिन्न शास्त्रों तथा सिद्धांतों के रूप में प्रचलित हुए।

     याज्ञवल्यक्य स्मृति के द्वारा चार वेद, छह शास्त्र, मीमांसा, न्याय पुराण तथा धर्मशास्त्र- इन चौदह विद्याओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त पाञ्चरात्र, कापिल, अपरान्तरतम, ब्रहिष्ट, हैरण्यगर्भ, पाशुपात तथा शैव इन सात सिद्धांतों का भी उल्लेख है।

     इन चौदह विद्याओं के 70 महातंत्र और 300 शास्त्र हैं। महातंत्र की तुलना में शास्त्र बहुत छोटे और संक्षिप्त होते हैं। यह विद्या विस्तार शिव (विशालाक्ष) ने कहा था। महाभारत में यह लिखा है कि ब्रह्म के तिवर्ग शास्त्र से शिव (विशालाक्ष) ने अर्थ भाग अर्थात अर्थशास्त्र को भिन्न किया था। उस अर्थभाग में विभिन्न विषय थे। बाद में उन्ही के आधार पर विभिन्न ग्रंथ लिखे गये हैं जो निम्न हैं-  

1. लोकायव शास्त्र।

2. धनुर्वेद शास्त्र।

3. व्यूह शास्त्र।

4. रथसूत्र।

5. अश्वसूत्र।  

6. हस्तिसूत्र।

7. हस्त्वायुर्वेद्।

8. शालिहोत्र।

9. यंत्रसूत्र।

10. वाणिज्य शास्त्र।

11. गंधशास्त्र।

12. कृषिशास्त्र।

13. पाशुपताख्यशास्त्र।

14. गोवैध।

15. वृक्षायुर्वेद।

16. तक्षशास्त्र।

17. मल्लशास्त्र।

18. वास्तुशास्त्र।

19. वाको वाक्य।

20. चित्रशास्त्र।

21. लिपिशास्त्र।

22. मानशास्त्र।

23. धातुशास्त्र।

24. संख्याशास्त्र।

25. हीरकशास्त्र।

26. अदृष्टशास्त्र।

27. तांत्रिक श्रति।

28. शिल्पशास्त्र।

29. मायायोगवेद।

30. माणव विद्या।

31. सूदशास्त्र।

32. द्रव्यशास्त्र।

33. मत्स्यशास्त्र।

34. वायस विद्या।

35. सर्प विद्या।

36. भाष्य ग्रंथ।

37. चौर शास्त्र।

38. मातृतंत्र।

          उपर्युक्त दी गयी 38 तरह की विद्याएं हैं। इनमें से अधिकतर जानकारी कौटलीय अर्थशास्त्र में मिलती है।

          वेद के छह अंगों में से एक अंग कल्प को माना गया है। कल्प शब्द का अर्थ विधि, नियम तथा न्याय है। ऐसे शास्त्र जिनमें विधि़, नियम तथा न्याय के संक्षिप्त, सारभूत तथा निर्दोष वाक्य समूह रहते हैं उन्हें कल्पसूत्र के नाम से जाना जाता है।

          कामसूत्र के तीन भेद हैं- श्रौत, गृह्य और धर्म। श्रौतसूत्रों में यज्ञों के विधान तथा नियम के बारे में वर्णित किया गया है। गृहसूत्रों में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी लौकिक और पारलौकिक कर्तव्यों तथा अनुष्ठानों के बारे में उल्लेख किया गया है। धर्मसूत्रों में अनेक धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक कर्तव्यों और दायित्वों का वर्णन किया गया है।

          कामसूत्र के समान ही धर्मशास्त्र भी श्रौत धर्मशास्त्र तथा स्मार्त धर्मशास्त्र- दो भागों में विभाजित है। सभी धर्मशास्त्रों का मूल उद्देश्य कर्मफल में विश्वास, पुनर्जन्म में विश्वास तथा मुक्ति पर आस्था है। इन्हीं तीन बातों का विस्तार जीवन के विभिन्न अंगों तथा उद्देश्यों को लेकर धर्मशास्त्रों में किया गया है।

          आचार्य वात्स्यायन का उद्देश्य अर्थशास्त्र तथा धर्मशास्त्र के इसी व्यापक क्षेत्र का अध्ययन है। इसके साथ ही कामसूत्र और उसके अंगभूतशास्त्र (संगीत शास्त्र) के लिए वह सलाह देता है।

          अर्थशास्त्र तथा धर्मशास्त्र की ही तरह कामशास्त्र में भी जीवन के लिए उपयोगी भावनाओं तथा प्रतिक्रियाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। वात्स्यायन के अनुसार अर्थशास्त्र तथा धर्मशास्त्र के अध्ययन के अलावा कामसूत्र का अध्ययन भी जीवन के लिए उपयोगी होता है।

          आचार्य वात्स्यायन ने कामशास्त्र न लिखकर उसके स्थान पर कामसूत्र लिखा है। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में केवल कौटलीय अर्थशास्त्र ही एक उपलब्ध ग्रंथ है। उसी तरह से कामशास्त्र के क्षेत्र में प्राचीन ग्रंथों का अभाव है जिसके कारण वात्स्यायन का यह कामसूत्र ही विशेष उपयोगी है।

          कामसूत्रकार कामसूत्र के साथ-साथ इसके अंगभूतशास्त्र अर्थात संगीत को भी पढ़ने की सलाह देता है। जिस प्रकार कामशास्त्र सृष्टि-रचना का सहायक है। उसी प्रकार से संगीतशास्त्र की नादविद्या भी संसार के रहस्यों को समझने का एक मुख्य साधन है। संगीत के स्वरों से देवता, ऋषि, ग्रह, नक्षत्र, छंद आदि का गहरा संबंध होता है।

          वाद्ययंत्रों को संगीत का सहायक माना जाता है। संगीत ब्रह्मनंद का सहोदर माना गया है। अर्थ, धर्म तथा काम को त्रिवर्ग कहा जाता है। यह त्रिवर्ग ही मोक्ष प्राप्ति का साधन होता है। वात्स्यायन के अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, कामशास्त्र तथा संगीत शास्त्र के अध्ययन की सलाह का अर्थ मोक्ष की प्राप्ति समझना चाहिए।